11 साल का दर्द; एक बहन जो भाई को याद कर हर साल रोती, मां जिसके बच्चे रह गए अनपढ़

13 मई 2008...शाम 7:30 बजे..... चंद मिनटों में जयपुर की चारदीवारी में एक के बाद एक 6 जगहों पर 8 सीरियल बम ब्लास्ट हुए। इनमें 71 लोगों की मौत हो गई और करीब 185 लोग घायल हुए थे। इस हमले में शामिल 5 आरोपियों पर आज विशेष कोर्ट फैसला सुनाने वाली है। ब्लास्ट में अपनों को खोने वालों के लिए यह न्याय एक राहत की उम्मीद है। लेकिन आज 11 साल बाद भी इन जख्मों के आंसू सूखे नहीं है। ऐसे ही परिवारों से भास्कर मोबाइल एप के रिपोर्टर ने बातचीत कर जानी उनके 11 साल के संघर्ष की कहानी:


एक भाई को खोकर बहन कैसा महसूस कैसा करती है आतंकी क्या जाने
जयपुर ब्लास्ट में 8 वर्षीय भाई शुभम को खोने वाली उसकी बड़ी बहन पूनम ने रुंधे गले से कहा कि आज मेरा भाई 19 साल का हो जाता। काश, वो हमारे साथ होता तो बहुत अच्छा होता। लेकिन 11 वर्ष बाद भी उसे भुला नहीं सके है। आज भी दिन रात मेरे मम्मी पापा रोते है। हमारा पूरा परिवार रोता है। एक बहन अपने भाई को खोकर कैसा महसूस कर सकती है। यह वो आतंकी नहीं समझ सकते। आज फैसला आने पर मेरे भाई की आत्मा को शांति मिलेगी। मुझे और परिवार को सुकून मिलेगा। उन सभी लोगों को शांति मिलेगी। जो ब्लास्ट में मारे गए। उसके जन्मदिन हो या राखी, आज भी सब रोते है। उसे पब्लिक के हवाले कर देते या उसी दिन फांसी देते है।


आपकों बता दें कि फूटाकोट पुरानी बस्ती निवासी शुभम तब अपनी गर्मियों की छुट्‌टी बिताने सांगानेरी गेट निवासी अपनी नानी के यहां गया था। 13 मई की रात को ही पापा छोटू महार उसे वापस घर लेकर आने वाले थे। इससे पहले शुभम अपने मामा के लड़के के साथ सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर गया था। जहां शाम करीब 7:35 पर हुए बम ब्लास्ट में शुभम की जान चली गई। 


11 साल भी अधूर रह गए सरकारी वादे, आश्वासन मिला, ना नौकरी नाहीं डेयरी बूथ
शुभम उर्फ कान्हा को खो दिया। ब्लास्ट के बाद कई नेता और सामाजिक संगठन घर सांत्वना देने पहुंचे। सरकारी महकमे के अधिकारी भी आए। सरकार ने तब मृतकों के परिजनों को 5 लाख रूपए नकद, सरकारी नौकरी और डेयरी बूथ के अलावा अन्य कई सहायता देने की घोषणाएं की। लेकिन 11 साल बीतने के बाद भी सरकारी वादे अधूरे रह गए। कई बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा लगाकर थक गए। लेकिन अभी भी शुभम के परिवार को ना सरकारी नौकरी मिली और नाहीं डेयरी बूथ मिला। ऐसे में यह परिवार आर्थिक तंगी से जूझता रहा है। क्योंकि आज शुभम जिंदा रहता तो 19 साल का होता और वह भी अपने बुजुर्ग माता पिता और दोनों बहनों की जिम्मेदारी संभाल सकता था।